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राष्ट्रीय डाक दिवस: जानें, चिट्ठियों और मनी ऑर्डर से QR कोड तक का सफर

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प्रसार भारती खबर के मुताबिक, एक वह समय था, जब चिट्ठियों में अपनों का प्रेम, गांव की मीठी सुगंध और मधुर स्मृतियां भरी रहती थीं. जब भी इन पत्रों को पढ़ते तो बातें और यादें दोनों ही हृदय को आनंद से भर देती थीं. ऐसे में लोग भी अपने दरवाजे पर टकटकी लगाए डाकिये के आने का इंतजार किया करते थे. क्योंकि तब चिट्ठियां ही अपने सगे संबंधियों के दुख-सुख, खुशी-गम बताती थीं. आज भी ऐसी ही कई स्मृतियां लोगों के मन में ताजा हो उठती हैं. यही कारण है कि चिट्ठियों को लेकर लोगों की इस बेताबी को शायरों और गीतकारों ने भी अपने-अपने अंदाज में बखूबी बयां किया है.

फिल्मी गीतों में भी झलकता है इसका महत्व : चिट्ठी आई है, चिट्ठी आई है. डाकिया डाक लाया, खुशी का पैगाम कहीं, कहीं दर्दनाक लाया. ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर, तुम नाराज ना होना. संदेशे आते हैं, हमें तड़पाते है, जो चिट्ठी आती है वो पूछे जाती है कि घर कब आओगे. ऐसे कितने ही गीत जब-जब फिल्मों में आए वे लोकप्रिय भी बहुत हुए.

डाक विभाग से तमाम मशहूर हस्तियों का भी रहा नाता

वहीं देश में कई डाकघर ऐसे भी हैं जिनका तमाम मशहूर हस्तियों से भी नाता रहा है. उपन्यास सम्राट के नाम से प्रसिद्ध लमही निवासी मुंशी प्रेमचंद के पिताजी भी डाक विभाग में ही कार्य करते थे. आज देश में कई ऐसे डाकघर भी हैं जो सम्पूर्ण महिला डाकघर के रूप में कार्यरत हैं. इस प्रकार भारतीय डाक विभाग समाज में कई मिसाल कायम करने का कार्य भी करता रहा है. यही कारण है कि हर साल 10 अक्टूबर को ‘राष्ट्रीय डाक दिवस’ के द्वारा भारतीय डाक विभाग की निभाई गई भूमिका को चिह्नित करने के लिए इस दिवस को मनाया जाता है. आज हमारे जीवन में इसकी अहम भूमिका को दर्शाने का ही दिन है. हर साल यह 10 अक्टूबर को मनाया जाता है और यह विश्व डाक दिवस का ही विस्तार है, जो 9 अक्टूबर को मनाया जाता है. बीते कई वर्षों में भारतीय डाक विभाग ने हमारे जीवन को आसान और तेज बनाया है. भले ही दूर होते हुए बहुत तेज तरीके से स्मार्टफोन, कंप्यूटर ने लोगों के लिए एक-दूसरे से संपर्क करना आसान बना दिया है लेकिन कुछ साल पहले तक ऐसा नहीं था. देश के कई हिस्सों में अभी भी ऐसा नहीं है. वहीं कई लोग इतना साधन सम्पन्न भी नहीं हैं कि स्मार्टफोन, कंप्यूटर इत्यादि का इस्तेमाल कर सकें. ऐसे में उनके लिए, पोस्ट भेजना कहीं अधिक सुलभ तरीका है. इसलिए भारतीय डाक विभाग ने कई वर्षों तक एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

देशभर में डेढ़ लाख से भी ज्यादा​ पोस्ट ऑफिस

यूं तो डाक विभाग देश के सबसे पुराने विभागों में से एक है लेकिन ताज्जुब करने वाली बात यह है कि आज डिजिटल होते युग में भी इसका अस्तित्व और अहमियत न सिर्फ बरकरार है बल्कि इसे खूब विस्तार भी मिल रहा है. आज देशभर में 1,55,531​ पोस्ट कार्यालय मौजूद हैं जो देश के दूरदराज के इलाकों में संचार का बेहतरीन माध्यम बनकर काम कर रहे हैं. इसलिए भारत के पास दुनिया में सबसे बड़ा डाक नेटवर्क है.

सामाजिक आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण : डाक विभाग देश के सामाजिक आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है. यह एक ऐसा संगठन है जो न केवल देश के भीतर बल्कि देश की सीमाओं से बाहर अन्य देशों तक पहुंचने में भी हमारी बड़ी मदद करता है. पूरे देश में 10 अक्टूबर को ‘राष्ट्रीय डाक दिवस’ मनाया जाता है. जबकि इससे एक दिन पूर्व यानि 9 अक्टूबर को ‘विश्व डाक दिवस’ मनाया जाता है और इसी क्रम में रविवार 9 अक्टूबर से 13 अक्टूबर तक भारत में राष्ट्रीय डाक सप्ताह की शुरुआत हुई. इस कार्यक्रम के तहत हर दिन अलग-अलग विषय को लेकर देशभर के डाक कार्यालयों द्वारा कार्यक्रम आयोजित किए जाने की योजना है.

राष्ट्रीय डाक दिवस का महत्व : राष्ट्रीय डाक दिवस का उद्देश्य देशभर में लोगों के दैनिक जीवन, व्यापार और सामाजिक तथा आर्थिक विकास में डाक की भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाना है. एक देश एक डाक प्रणाली की अवधारणा को साकार करने हेतु 9 अक्टूबर 1874 को ’यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन’ की स्थापना स्विट्जरलैंड में की गई. जिससे विश्व भर में एक समान डाक व्यवस्था लागू हो सके. भारत प्रथम एशियाई राष्ट्र था जो कि 1 जुलाई 1876 को इसका सदस्य बना. कालांतर में वर्ष 1969 में टोक्यो, जापान में सम्पन्न यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन कांग्रेस में इस स्थापना दिवस को विश्व डाक दिवस के रूप में मनाने हेतु घोषित किया गया. बाद में उसी को विस्तार देने के लिए भारत में 10 अक्टूबर को राष्ट्रीय डाक दिवस मनाया जाने लगा.

150 साल से देश देश की रीढ़ बनकर कर रहा काम

करीब 150 से भी अधिक वर्षों से, डाक विभाग देश की रीढ़ बनकर काम कर रहा है. इसने संचार का प्रमुख साधन बनकर देश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. सामाजिक और आर्थिक विकास को लेकर यह कई मायनों में भारतीय नागरिकों के जीवन को छूता है. इसके प्रमुख कार्य मेल डिलीवर करना, लघु बचत योजनाओं के तहत जमा स्वीकार करना, डाक जीवन बीमा (PLI) और ग्रामीण डाक जीवन बीमा (RPLI) के तहत जीवन बीमा कवर प्रदान करना, बिल जैसी रिटेल सेवाएं प्रदान करना और संग्रह, प्रपत्रों की बिक्री इत्यादि करना है. भारतीय डाक विभाग भी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS) वेतन वितरण और वृद्धावस्था पेंशन भुगतान जैसे नागरिकों के लिए अन्य सेवाओं के निर्वहन में भारत सरकार के लिए एक एजेंट के रूप में कार्य करता है. वहीं अब पीएम मोदी के नेतृत्व में बनी केंद्र सरकार के प्रयासों से डाकघरों में कई डिजिटलाइज सेवाएं शुरू कर दी गई हैं. चिट्ठियों और मनी ऑर्डर के पुराने दौर से अलग लोगों के जीवन को और आसान बनाने के लिए ऐसे किया गया है. उदाहरण के तौर पर अब लोग इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक के जरिए QR कोड का इस्तेमाल कर अपने खाते में पैसे जमा और निकासी कर सकते हैं. खासतौर से वरिष्ठ नागरिकों को इस सेवा से काफी सहूलियत मिली है.

दुनिया में सबसे बड़ा डाक नेटवर्क : 1,55,531​ पोस्ट कार्यालयों के साथ, डाक विभाग​ दुनिया में सबसे बड़ा डाक नेटवर्क है, जिनमें से 139,067 ग्रामीण क्षेत्रों में हैं. स्वतंत्रता के समय, 23,344 डाकघर थे, जो मुख्य रूप से शहरी क्षेत्रों में थे. इस प्रकार, भारतीय डाक विभाग ने अपने नेटवर्क को आजादी के बाद से सात गुना अधिक विस्तार दिया है. मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में इस विस्तार पर ध्यान केंद्रित किया गया है. औसतन, एक डाकघर 21.56 वर्ग किलोमीटर और 7,753 लोगों की जनसंख्या वाले क्षेत्र में कार्यरत है.

डाक सेवाओं का रहा है पुराना इतिहास

डाक सेवाओं का इतना पुराना इतिहास रहा है कि इनमें से कई तो आजादी के पहले से ही देश में डाक सेवाओं प्रदान कर रहे हैं. डाकघरों की ऐतिहासिकता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वाराणसी सिटी डाकघर वर्ष 1898 में निर्मित और विशेश्वरगंज स्थित वाराणसी प्रधान डाकघर वर्ष 1920 में निर्मित ब्रिटिश कालीन इमारतों में निरंतर संचालित हैं. विशेश्वरगंज स्थित प्रधान डाकघर में आज भी आजादी से पहले का लेटर बॉक्स धरोहर के रूप में लगाया गया है. वहीं, डाक बांटने के लिए डाकियों द्वारा इस्तेमाल किए गए भाले इत्यादि भी सुरक्षित रखे गए हैं. प्रधान डाकघर में स्थित फिलेटलिक ब्यूरो डाक टिकट संग्रह के शौकीनों के लिए प्रमुख स्थल है. जहाँ तमाम नए.पुराने डाक टिकट प्रदर्शित हैं. भारत में डाक सेवा अंग्रेजों द्वारा शुरू की गई थी. इसकी स्थापना 1854 में लॉर्ड डलहौजी ने की थी. वर्तमान में, यह संचार मंत्रालय के अधीन कार्य करता है और सबसे अधिक दुनिया में व्यापक रूप से वितरित डाक प्रणाली है. डाकघर डाक भेजता है, मनीआर्डर के रूप में धन भेजता है जो कि कई भारतीयों के लिए पैसे भेजने का एकमात्र तरीका है. डाक विभाग छोटी बचत योजनाएं भी चलाते हैं. इसके अलावा डाक जीवन बीमा और ग्रामीण डाक जीवन बीमा के तहत जीवन बीमा कवरेज सेवा भी दी जाती है. वरिष्ठ और सेवानिवृत्त नागरिकों को यह भी पेंशन के भुगतान जैसी सरकारी सेवाओं के निर्वहन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. मनरेगा के तहत मजदूरी का वितरण भी डाकघरों के माध्यम से किया जाता है. भारत में 23 पोस्टल सर्कल और आर्मी पोस्ट ऑफिस सहित 9 पोस्टल जोन हैं. डाकघरों में एक 6-अंकीय पिन कोड प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता हैं, जिसे 1972 में भारत में पेश किया गया था.

भारत में पिन कोड प्रणाली

भारतीय डाक विभाग अपनी डाक सेवाओं में प्राथमिक घटक के रूप में एक पिन कोड का इस्तेमाल करता है जो डाक सूचकांक संख्या के लिए यूज किया जाता है. इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई यह जानना भी दिलचस्प है. दरअसल, भारतीय डाक विभाग की पिन प्रणाली केंद्रीय संचार मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव श्रीराम भीकाजी वेलणकर की देन है. उन्होंने 15 अगस्त 1972 को 6-अंकीय पिन प्रणाली प्रस्तुत की थी. पिन का पहला अंक क्षेत्र को दर्शाता है, दूसरा अंक उप-क्षेत्र को दर्शाता है और तीसरा अंक जिले को दर्शाता है. बाकी अंतिम तीन पिन अंक डाकघर के कोड को प्रदर्शित करते हैं जिसके तहत संबंधित पत्र अपने पते पर पहुंच जाता है.

गौरतलब है, देश में महामारी की स्थिति में भी भारतीय डाक कर्मचारियों ने बिना देरी किए अपनी जान जोखिम में डालकर राष्ट्र सेवा की थी, यहां तक कि इस दौरान देश में व्यापक बीमारी फैली थी. उस दौरान ये सेवाएं ही एकमात्र रास्ता थीं. परिवहन दवाएं, कोविड-19 परीक्षण किट, और मेडिकल पार्सल इन्हीं के जरिए हर दूरगामी क्षेत्र तक पहुंचाएं जा रहे थे. इस प्रकार भारतीय डाक विभाग का आज भी बहुत अधिक महत्व है जिसे हम कभी नहीं भुला सकते.

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